गांधी कथा: डॉ. सत्यव्रत की जुबानी – एक वैश्विक पहल की अनमोल झलक

"सत्य ही ईश्वर है।"महात्मा गांधी का यह मंत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। इसी सत्य और अहिंसा की…

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प्रेम के अलावा कोई दरवाजा नहीं है

पश्चिम बंगाल के मध्य कोलकाता में स्थित ऐतिहासिक बैंटिक स्ट्रीट पर आलिया होटल एक प्रतिष्ठित रेस्तरां है, जो अपने अस्तित्व के 97 वर्षों से…

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अहिंसात्मक शक्ति का बीज भू-दान आंदोलन

आजादी मिलते ही देश की राजनीति में बड़ा ऊहापोह दिखता है। कुर्सी के प्रति लोगों की लालसा बढ़ती जाती है और गांधीजी के मिशन…

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ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर सवाल क्यों? भाग-२

ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर सवाल क्यों? ‘गांधी एक असंभव संभावना’ के लेखक सुधीर चन्द्र से नितिन ठाकुर की बातचीत

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ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर सवाल क्यों? भाग १

सुधीर चन्द्र ने एक किताब लिखी थी- गांधी एक असम्भव संभावना. यह किताब गांधी के अंतिम दिनों का मार्मिक दस्तावेज है. लेकिन बात केवल अंतिम दिनों की नहीं, आज हम गांधी की जिन्दगी से जुड़े सबसे मुश्किल सवालों पर चर्चा करेंगे. क्या गांधी ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में अहिंसक संघर्ष के अपने सिद्धांत की हार स्वीकार कर ली थी? गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों की हकीकत क्या है? किसने कर दी थी गांधी की हत्या की भविष्यवाणी? आइये, इतिहास के इन पन्नों से रूबरू हों।

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पूँजीवाद का उपाय है ट्रस्टीशिप

पूंजीवाद से उपजी आर्थिक असमानता का उपाय, जो गाँधी बता रहे हैं, वह ट्रस्टीशिप और अपरिग्रह है. हिंसा के विषय में भी गांधी से बढ़कर कोई दूसरा पैगम्बर पिछले हजार दो हजार साल में नहीं हुआ. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नेता नेल्सन मंडेला अतिरेक में हिंसा के रास्ते चले गये. बम बनाना और बंदूकों का इस्तेमाल करना उन्हें जायज़ लगता था. गोरों ने उनको 27 साल जेल में रखा.

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स्वराज-रचना और राष्ट्र-निर्माण का गांधी-मार्ग

बीते पचहत्तर बरसों में हमने लोकतान्त्रिक संविधान और संसदीय राजनीति का सदुपयोग करके एक ‘कल्याणकारी राज्य’ की रचना की है. पहले चार दशक राज्य द्वारा निर्देशित नियोजन का रास्ता अपनाया गया. फिर बीते तीस बरस बाजारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के उद्देश्य से खर्च किये गए. फिर भी भारत के गाँवों, कस्बों, नगरों में एक चौथाई आबादी निर्धनता और निरक्षरता के दो पाटों में फंसी हुई है. देश की स्त्रियों, किसानों, दस्तकारों, श्रमजीवियों, दलितों, पसमांदा मुसलमानों और आदिवासियों के बीच स्वराज का अधूरा बने रहना चिंता का विषय है. इस दुर्दशा से मुक्ति के लिए स्वराज रचना और राष्ट्र-निर्माण के अधूरेपन को रचनात्मक कार्यक्रमों के जरिये दूर करना ही युगधर्म है.

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