गांधी की एक विरासत को उजाड़ने की कहानी

सर्व सेवा संघ

गांधी की एक विरासत को उजाड़ने की कहानी

भाग-२

जमीन पर कब्जे की योजना

सर्व सेवा संघ परिसर पर कब्जा करने का ताना-बाना कई सालों से बुना जा रहा था, लेकिन इसकी शुरुआत हुई 16 जनवरी 2023 को. परिसर और प्रकाशन का काम देखने वाले अरविंद अंजुम के मुताबिक, एक छद्म नाम मोइनुद्दीन की ओर से बनारस सदर के उप जिलाधिकारी की कोर्ट में एक अर्जी डाली गई, जिसमें दावा किया गया कि सर्व सेवा संघ की संपूर्ण संपत्ति उत्तर रेलवे की है.

शिकायतकर्ता मोइनुद्दीन की इस अर्जी पर न कोई पता दर्ज है, न ही कोई फोन नंबर है, न ही कोई आधार कार्ड है. इस फर्जी शिकायत को तहसील प्रशासन ने इतनी गंभीरता से लिया कि तहसीलदार, एसडीएम से लेकर डीएम तक जांच करने दौड़ने लगे. रेलवे ने दावा किया कि जिस जमीन पर सर्व सेवा संघ खड़ा है, वह बेशकीमती संपत्ति उनकी है और 63 बरस पहले कूटरचित दस्तावेजों के जरिये हड़पी गई है.

इस सनसनीखेज आरोप के छींटे सिर्फ विनोबा पर ही नहीं, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, रेल मंत्री जगजीवन राम और सर्व सेवा संघ के ट्रस्टी राधाकृष्ण बजाज पर भी पड़ते हैं. गांधीवादी विचारों को दुनिया भर में प्रचारित करने के लिए स्थापित सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, जेसी कुमारप्पा, दादा धर्माधिकारी, धीरेंद्र मजूमदार, आचार्य राममूर्ति सरीखे मनीषियों सहित वर्तमान आंदोलनों और सामाजिक प्रवृत्तियों, प्राकृतिक चिकित्सा आदि विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित करता रहा है.

अरविंद अंजुम बताते हैं कि 15 मई 2023 को प्रशासन द्वारा गांधी विद्या संस्थान के भवनों के ताले जब तोड़े गए, उस समय तक गांधी विद्या संस्थान का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित था. इस तरह यह अदालत की अवमानना का स्पष्ट मामला है. जब प्रशासन के इस कृत्य पर इलाहबाद हाईकोर्ट में रीजॉइंडर दाखिल किया गया तो 16 मई के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने डीएम वाराणसी को निर्देशित किया कि इस आदेश की तिथि से दो महीने के अंदर वे गांधी विद्या संस्थान की ज़मीन के कागजात चेक कर लें और यदि वे सही हों तो जमीन याचिकाकर्ता को सौंप दी जाए.

इस आदेश के बाद डीएम वाराणसी ने सर्व सेवा संघ की पूरी ज़मीन की पैमाइश और कागजात की तथाकथित जांच करवा डाली और 26 जून के अपने फैसले में इस पूरी ज़मीन का मालिक उत्तर रेलवे को घोषित कर दिया. इसके अगले ही दिन 27 जून को रेलवे ने परिसर के सभी भवनों पर ध्वस्तीकरण का नोटिस चिपका दिया, जिस पर 30 जून तक परिसर को खाली करने का निर्देश था. इसके तुरंत बाद एसडीएम सदर ने रेलवे की याचिका पर खतौनी के रिकॉर्ड से सर्व सेवा संघ का नाम हटाकर उत्तर रेलवे का नाम दर्ज करने का आदेश दिया.

सर्व सेवा संघ के चंदन पाल ने बताया कि रेलवे की नोटिस के तुरंत बाद उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. अदालत का आदेश 3 जुलाई को आया कि याचिकाकर्ता, सिविल जज (सीनियर डिविजन) वाराणसी की अदालत में पहले से ही दायर सिविल सूट के मुक़दमे में इंजंक्शन एप्लीकेशन दाखिल करे और रेलवे की नोटिस पर स्टे देने से इनकार कर दिया. अब रेलवे की नोटिस पर स्टे के लिए 7 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल की गई.

17 जुलाई के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले को सिविल सूट में ही तय होने दें और इंजंक्शन एप्लीकेशन भी वहीं दें. हम डीएम के आदेश के खिलाफ कुछ नहीं करने जा रहे, क्योंकि उन्हें हाईकोर्ट ने अधिकृत किया था. आपकी याचिका हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ होती तो हम उसे सुनते. सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत आदेश 21 जुलाई को अपलोड हुआ. सुप्रीम कोर्ट से लौटकर वाराणसी की उक्त अदालत में इंजंक्शन एप्लीकेशन दाखिल किया गया. उसकी पहली सुनवाई 20 जुलाई को और दूसरी सुनवाई 21 जुलाई को थी, लेकिन दोनों ही तारीखों पर अदालत नहीं बैठी और 22 जुलाई को सदल बल पजेशन ले लिया गया.

रेलवे ने सर्वोच्च अदालत में यह आरोप लगाया कि सर्व सेवा संघ की तरफ से जिन लोगों ने यह याचिका डाली है, वे सर्व सेवा संघ के अधिकृत लोग नहीं हैं. सर्व सेवा संघ में फिलहाल दो गुट बन गए हैं और दोनों गुटों की वैधानिकता का मामला असिस्टेंट चैरिटी कमिश्नर वर्धा की अदालत में विचाराधीन है. असिस्टेंट चैरिटी कमिश्नर वर्धा के रिकॉर्ड में खुद का नाम आज भी मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में दर्ज होने का दावा करते हुए सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष महादेव विद्रोही बेदखली की इस कार्यवाही को गैरकानूनी मानते हैं. उनका कहना है कि विभिन्न अदालतों में अनेक चरणों में लड़े जा रहे मुकदमों को जानबूझकर कमजोर किया गया है. अदालतों में सही ढंग से सही मांग की जाएगी तो फैसले हमारे पक्ष में आएंगे, क्योंकि हमारे कागजात वैध हैं.

पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ता निकेश सिन्हा कहते हैं कि किसी रेवेन्यू कोर्ट को कोई रजिस्ट्री खारिज करने का अधिकार नहीं है. अगर किसी को कोई बैनामा अवैध तरीके से किया गया है तो उसे सिर्फ तीन साल के अंदर सिविल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, 63 बरस बाद नहीं. अगर विनोबा भावे और जेपी के समय सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों ने कूटरचित दस्तावेजों के जरिये रेलवे की संपत्ति हड़पी है तो सबूतों की रोशनी में सिविल कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है. रेल अफसरों का दावा यदि सही है तो सबसे पहले उन्हें थाने को सूचना देनी चाहिए थी और आरोपितों के खिलाफ जालसाजी का मामला दर्ज कराना चाहिए था.

उनके अनुसार, रेवेन्यू कोर्ट प्रशासनिक होती है, जो कलेक्टर के अधीन काम करती है. सुनियोजित तरीके से जानबूझकर इस मामले को पेचीदा बनाया जा रहा है और नौकरशाही अपने अधिकारों की हद पार कर रही है. कोई प्रशासनिक अफसर कानून के खिलाफ कोई निर्णय लेता है तो देर-सबेर उसके खिलाफ सख्त एक्शन जरूर होगा. प्रिंसिपल ऑफ एडवर्स पजेशन के मुताबिक यदि किसी की निजी जमीन पर 12 साल और सरकारी जमीन पर 30 साल तक किसी का पजेशन बना रहा और कोई आपत्ति दाखिल नहीं की गई, तो उसे इस तरह क़ानून हाथ में लेकर बेदखल नहीं किया जा सकता.

इंटरमॉडल स्टेशन और उसका डीपीआर

सरकार और जिला प्रशासन की तरफ से यह सारा कुछ इस उद्देश्य से किया गया कि इस परिसर के बगल में ही कुछ दूरी पर स्थित काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार किया जाना है. यहां इंटर मॉडल स्टेशन का प्रस्ताव है.

कमिश्नर वाराणसी का कहना था कि सर्व सेवा संघ की यह जमीन तो रेलवे के प्रोजेक्ट में आती ही नहीं, फिर न जाने रेलवे यहां क्या करने वाला है. इस प्रोजेक्ट का डीपीआर देखने से पता चलता है कि इंटर मॉडल स्टेशन के नजदीक स्थित इस जमीन पर पंचसितारा होटल और अर्बन हाट बनाए जाएंगे. यद्यपि कुल लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित यह इंटर मॉडल स्टेशन एक साथ पर्यावरण और मनुष्यता विरोधी भी है.

सर्व सेवा संघ परिसर से लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर गंगा बहती है. नदियों के उच्चतम बाढ़ बिंदु से दोनों तरफ 500 मीटर के दायरे में निर्माण कानूनन प्रतिबंधित हैं. लाल खां का रौज़ा तो और भी करीब है. पुरातात्विक महत्व के स्थानों के आसपास भी निर्माण कानूनन वर्जित होते हैं. यहीं पर गंगा नदी का एक खास क्षेत्र कछुआ सेंचुरी घोषित है. फिर गंगा किनारे का यह नगर क्षेत्र धरोहर के तौर पर संरक्षित भी है.

उल्लेखनीय है कि पूरे वाराणसी में केवल तीन स्थान ऐसे हैं, जहां पेड़ दिखते हैं. बीएचयू और डीएलडब्ल्यू के अतिरिक्त राजघाट स्थित यह परिसर अपनी वृक्ष संपदा के चलते शहर को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला हब भी है. अब यह तीन मंजिला इंटर मॉडल स्टेशन का प्रोजेक्ट यदि बनता है तो इन तमाम कानूनों का उल्लंघन तो होगा ही, पर्यावरण का विनाश भी करेगा.

वाराणसी स्थित संकट मोचन मंदिर के महंथ और आईटी बीएचयू के प्रोफेसर, प्रख्यात पर्यावरण विज्ञानी पंडित विश्वम्भर नाथ मिश्र कहते हैं कि आधुनिक विकास की नजर में पर्यावरण की सुरक्षा कोई विषय है ही नहीं. इसी स्थान पर, जहां इंटरमॉडल स्टेशन प्रस्तावित है, गंगा किनारे स्थित खिड़किया घाट पर आधुनिक निर्माण करके उसे नमो घाट के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. अफसोसनाक है कि घाट का यह पक्का निर्माण गंगा के पेट में अंदर तक घुसकर किया गया है और इसका विकास मात्र एक घाट के तौर पर नहीं, एक बाज़ार का तौर पर किया गया है.

उनका यह भी कहना है कि घाट पर ही सीएनजी स्टेशन बनाया गया है. यहां से लेकर आदिकेशव मंदिर तक पूरा ऐतिहासिक महत्व का क्षेत्र है. यह संपूर्ण प्राचीनता संरक्षित करने की जगह, उसे विकास के पत्थरों के नीचे दबाया जा रहा है. नदी में निर्माण अवैध है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में नदी को जिंदा मनुष्य मानने की बात कही थी. नदी के भीतर तक हुए इन निर्माणों और किनारे पर प्रस्तावित इंटर मॉडल स्टेशन के निर्माण से नीडी का स्वाभाविक प्रवाह और उसकी श्वसन प्रक्रिया बाधित होगी. प्रकृति जब विद्रोह करेगी, तो मनुष्यता के भयावह नुकसान का खतरा सामने है.

बेदखली की वैचारिक पृष्ठभूमि

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘बनारस में महात्मा गांधी बहुत से लोगों की गले की हड्डी रहे हैं. अब उनके नाम, विरासत और विचारों की हत्या का सुनियोजित प्रयास चल रहा है. वह जीवित थे तब भी और मरने के बाद तो और भी ज़्यादा हैं. वो अपने देश में गांधीजी का विरोध और गोडसे का गुणगान करते हैं और विदेश जाकर बोलते हैं कि मैं गांधी के देश से आया हूं.’

सर्व सेवा संघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की परस्पर विरोधी वैचारिकी कोई छुपी हुई बात नहीं है. जैसे पहले साबरमती आश्रम के पुनरुद्धार के नाम पर उस आश्रम को पर्यटन स्थल बना दिया गया, वैसे ही वाराणसी परिसर को कब्जे में लेकर वहां भी अनियंत्रित निर्माण की योजना है. ऐसा माना जा रहा कि वैचारिक विरोध के चलते ही आरएसएस की विचारधारा के लोग गांधी संस्थानों को नष्ट करने और उनकी जमीनों पर कब्जे करने के अभियान में लगे हुए हैं. सर्व सेवा संघ के लोग इसे आरएसएस द्वारा गांधी संस्थाओं की जमीनों पर कब्जे की साजिश ही मानते हैं. जैसे छोटी बड़ी सभी नदियां अंत में जाकर समंदर में ही मिलती हैं, उसी तरह कब्जा चाहे आरएसएस करे या सरकार करे, अंत में ये जमीनें ‘मित्र पूंजीपतियों’ के पास ही जाएंगी. हरिशंकर परसाई ने आरएसएस के बारे में लिखा है कि ‘संघ पूंजीपतियों की पैदल सेना है.’

 

 

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