विनोबा जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जिसने उनकी गीताई की रचना को प्रेरित किया। यह घटना करीब 1915 की है, जब विनोबा जी की माँ रुक्मिणी जी बडौदा में एक प्रवचनकार के प्रवचन सुनने जाती थीं। वह गीता पर प्रवचन करते थे, लेकिन उन्हें बेहतर कुछ समझ नहीं आता था। तत्पश्चात्, उन्होंने विनोबा जी से कहा कि वह मराठी में गीता की पुस्तक लाएं। विनोबा जी ने द्रविड शास्त्री की मराठी गद्य अर्थ की पुस्तक लायी, लेकिन उनकी माँ को वह पसंद नहीं आयी। उन्होंने कहा कि गद्य से पद्य पढ़ना आसान होगा। वामन पंडित का गीता का मराठी अनुवाद ‘समश्लोकी गीता’ उपलब्ध था, लेकिन वह भी उनकी माँ को ठीक नहीं लगा। तब विनोबा जी की माँ ने उनसे कहा कि वह स्वयं गीता का मराठी में सरल पद्यानुवाद करें। विनोबा जी ने इस बात को स्वीकार किया और गीताई की रचना की।
विनोबा भावे की इसी अमूल्य कृति गीताई की स्मृति को संजोए रखने के लिए, श्री कमलनयन बजाज ने एक अद्वितीय परिकल्पना को साकार करने का निर्णय लिया – गीताई मंदिर की स्थापना। इस परिकल्पना को विनोबाजी ने स्वीकार भी किया।
विनोबाजी और गीताई की स्मृति में एक स्थायी स्मारक की स्थापना करने की इच्छा श्री कमलनयन बजाज जी की थी, जो उनके विनोबा जी के शिष्यत्व काल से ही रही। इस विचार को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने जमनालालजी के लिए भी ऐसा स्मारक बनाने की कल्पना की। कमलनयनजी चाहते थे कि स्मारक गांधीजी, विनोबाजी और जमनालालजी के जीवन-दर्शन और व्यक्तित्व के अनुकूल हो, जो सुंदर भी हो, सादा भी हो, प्रेरणादायक के साथ-साथ कलापूर्ण भी हो। उन्होंने गीताई मंदिर की कल्पना को, जो नवीन व मौलिक थी, श्री विनायक पुरोहित के सहयोग से पूरा खाका तैयार किया। इसके बाद, उन्होंने विभिन्न स्मारकों का अवलोकन व स्थापत्य कला के विशेषज्ञों से परामर्श कर प्रारूप को और अधिक स्पष्ट किया। विनोबा जी की सहमति से जमनालाल जी के ७५वें जन्मदिन ४ नवंबर १९६४ को स्वयं विनोबाजी ने इसका भूमिपूजन किया। इसके बाद, बादशाह खान अब्दुल गफ्फारखां के करकमलों द्वारा गीताई मंदिर का शिलान्यास, भूमि पूजन के पांच वर्षों बाद ४ नवंबर १९६९ को हुआ।
गीताई मंदिर नाम से आपको शायद देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजे एक पारंपरिक मंदिर की कल्पना होगी, लेकिन यहाँ आपको गर्भगृह, छत या मूर्तियाँ नहीं मिलेगी, बल्कि इसकी जगह भारत के चारों कोनों से लाए गए अठारह प्रकार के पत्थरों के स्लैब पर गीताई के अठारह अध्यायों को उकेरा गया है। यह स्मारक राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक है, जो गांधीजी, विनोबाजी और जमनालालजी के आदर्शों को संरक्षित करता है। गीताई मंदिर की विशेषता इसकी अनूठी वास्तुकला में भी है, अगर इसे कोई ऊपर से देखे तो उसकी संरचना चरखे और गाय की मिश्रित आकृति को दर्शाती है। चरखा गांधी जी के आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन के सिद्धांत का प्रतीक है, जबकि गाय जमनालालजी के ग्रामीण विकास व सामाजिक न्याय के कार्यों की प्रतीक है। ये दोनों प्रतीक मंदिर की वास्तुकला में समाहित होकर एक अद्वितीय और अर्थपूर्ण संरचना बनाते हैं।
मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करने पर, स्वस्तिक के आकार में बने स्तंभ पर विनोबाजी की हस्तलिपि में गीताई के प्रति उनके भाव अंकित है – “गीताई माऊली माझी तिचा मी बाळ नेणता। पडतां रडतां घेई उचलूनि कडेवरी।” इसका अर्थ है – गीताई मेरी माता है और मैं उसका नन्हा बालक। जब मैं गिरता हूँ और रोता हूँ तो वह मुझे उठाकर गोद में ले लेती है। यह वाक्य विनोबाजी की गीताई के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है, जो उन्हें गीताई की मातृत्व भावना से जोड़ता है। इसी स्तंभ पर विनोबाजी का विश्व संदेश “सत्य-प्रेम-करुणा” और गीताई का एक शब्द में सार “साम्ययोग” भी अंकित है, जो मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। यह मंदिर एक अद्वितीय साधना-मंदिर के समान है, जो पारंपरिक पूजा के रीति-रिवाजों से परे एक शांत और सात्विक वातावरण प्रदान करता है, जिसे हम ध्यान, चिंतन और आत्म-शोधन के लिए एक आदर्श स्थल कह सकते हैं।
कमलनयनजी की आत्मीय इच्छा थी कि उनकी भस्मी गीताई मंदिर में एक ऐसे पवित्र स्थल पर स्थापित की जाए जहाँ दर्शनार्थियों की पवित्र चरणरज निरंतर उस पर पड़ती रहे। अतः उनकी श्रद्धा और समर्पण की भावना को साकार किया जा सके, इसी उद्देश्य से उनकी भस्मी मंदिर के प्रवेशद्वार की सुरंगनुमा सीढ़ी के नीचे स्थापित की गई है, जो उनकी विनम्रता, समर्पण और आत्मोत्सर्ग की भावना का प्रतीक है।
गीताई-मंदिर की रूपरेखा एक विशिष्ट स्मारक की परिकल्पना प्रस्तुत करती है, जिसका उद्देश्य किसी एक व्यक्ति की स्मृति को संरक्षित करने के बजाय, सर्वोदय विचारधारा और इसके विश्वास से जुड़े लोगों के जीवन की स्मृति को बनाये रखना है। कमलनयनजी बजाज ने इस स्मारक की रूपरेखा में सात महत्वपूर्ण तत्व शामिल बताया – वह धार्मिक पृष्ठभूमि जिसने गांधी-विचार और उसके अनुकूल पावन जीवन को पनपाया, समग्र भारतीय उपद्वीप में सर्वोदयी विचारधारा का प्रभावपूर्ण विस्तार, ग्राम्य अंचलों के खुलेपन का स्थापत्य में समावेश, भारतीय ग्रामीण जीवन में खटकते हुए अभाव को दूर करने वाला भाव, सृष्टि-सौंदर्य और प्रचुरता के वातावरण का कलापूर्ण कृति द्वारा दिग्दर्शन, सर्वोदय कार्यक्रम से जुड़ी खुरदुरी और ग्रामीण बुनावट बिल्कुल खद्दर की तरह तथा गांधी जीवन की सर्वविदित पवित्रता, सरलता, नम्रता, सादगी, खुलापन और दृढ़ता है।
अतः गीताई मंदिर एक ऐसा स्मारक है जो सर्वोदय विचारों को प्रतिबिंबित करता है, जो गांधी जी के आदर्शों और विनोबाजी के विचारों का प्रतीक है। इस मंदिर में विनोबाजी द्वारा रचित ‘गीताई’ के श्लोकों को शिलाओं पर अंकित किया गया है, जो देश में अपनी तरह का पहला प्रयास है, जहाँ एक संपूर्ण मराठी ग्रंथ को शिलाओं पर उकेरा गया है। इस मंदिर में गीताई के १८ अध्यायों के लिए १८ प्रकार के शिलाखंडों का उपयोग किया गया है, जो देश की चारों दिशाओं से लाए गए थे। इन शिलाखंडों का चयन विशेषज्ञों की राय व प्रमाणित प्रयोगों के आधार पर किया गया था, ताकि इन पर प्रकृति के संभावित परिणामों का प्रभाव कम से कम पड़े। मंदिर की विशेषताओं में से एक यह भी है कि शिलाखंडों का आकार निश्चित किया गया है, जिससे प्रत्येक शिलाखंड की ऊंचाई एकसमान बनी रहती है।