गांधी के राम : सत्य, शांति और सर्वधर्म समभाव की खोज

– सिबी के. जोसेफ

“रामराज्य का अर्थ है सत्य और न्याय का शासन लोगों के दिलों में, न कि महलों में।”

महात्मा गांधी राम नवमी के मौके पर मुझे शैक्षणिक मंच से एक ऐसा संदेश मिला, जिसने रामायण को देखने का बेहतर नजरिया दिया। इसने रामायण के गहरे मतलब को समझने में मेरी मदद की। संदेश में बताया गया कि रामायण कोई साधारण कहानी नहीं, बल्कि अच्छाई और बुराई की लड़ाई का एक शाश्वत प्रतीक है। इसमें राम उस प्रकाश की तरह हैं जो हमारे भीतर छुपा है और यह प्रकाश तब जन्म लेता है जब हम अपने दस रथों – यानी पांच इंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों को सही तरीके से काबू में रखते हैं। ये एक ऐसी आंतरिक यात्रा है जिसमें आत्मा (राम) मन (सीता) से मिलने की कोशिश करती है। इसमें सांस (हनुमान) और जागरूकता (लक्ष्मण) उसकी मदद करते हैं, और अहंकार (रावण) को हराकर वो शांति तक पहुंचती है। ये पुरानी कहानी हमें गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक समझ देती है – खुद को जानने, शांति पाने और दूसरों की भलाई के लिए जीने का रास्ता दिखाती है।
इस संदेश ने मुझे महात्मा गांधी के राम के बारे में सोचने पर मजबूर किया। गांधीजी का राम कोई इतिहास का किरदार नहीं था, बल्कि एक ऐसी सोच थी जो हर जगह, हर समय मौजूद है। उनके शब्दों में, “मेरा राम, हमारी प्रार्थना के समय का राम, वह ऐतिहासिक राम नहीं है, जो दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा था। वह तो सनातन, अजन्मा और अद्वितीय राम है।” यह नजरिया बताता है कि ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और निराकार है, जो सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोगों के लिए सुलभ है। गांधी का संदेश सभी अस्तित्व की एकता पर प्रकाश डालता है, लोगों को अपनी व्यक्तिगत आस्थाओं और परंपराओं की सीमाओं से परे देखने के लिए प्रोत्साहित करता है। उन्होंने कहा,
“जब कोई यह एतराज पेश करता है कि राम का नाम लेना या रामधुन गाना तो सिर्फ हिंदुओं के लिए है, ऐसी हालत में मुसलमान उसमें किस तरह शरीक हो सकते हैं? तब मुझे मन ही मन हंसी आती है।”
उन्होंने हमारे सामने एक प्रासंगिक प्रश्न रखा, “क्या मुसलमानों का भगवान हिंदुओं, पारसियों या ईसाइयों के भगवान से जुदा है? नहीं, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ईश्वर तो एक ही है।” यह समझ साझा मानवता और सामान्य उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देती है, यह स्वीकार करते हुए कि ईश्वर एक सार्वभौमिक शक्ति है जो नामों और रूपों से परे है। गांधीजी का ईश्वर किसी विशिष्ट देवता या ऐतिहासिक व्यक्ति तक सीमित नहीं है। इसके बजाय, वे ईश्वर को जीवन का सार, शुद्ध चेतना और सर्वव्यापी शक्ति के रूप में देखते हैं। उनका कहना था, “ईश्वर एक शक्ति है। वह जीवन का सार है। वह शुद्ध चेतना है। वह सर्वव्यापी है।” यह दृष्टिकोण व्यक्तियों को अपने भीतर और अपने आस-पास की दुनिया में दिव्य शक्ति की गहरी समझ विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। रामायण और गांधीजी के राम की ऐसी समझ हमें एक बड़ा संदेश देती है। ये हमें खुद को बेहतर बनाने, शांति ढूंढने और दूसरों के लिए जीने का रास्ता दिखाती है। जब हम इस बात को मान लेते हैं कि ईश्वर हर जगह है और जीवन का आधार है, तो हम एकता, प्यार और समझ की भावना पैदा कर सकते हैं – जो धर्म और संस्कृति की छोटी-छोटी दीवारों को तोड़ देती है। ये नजरिया हमें अलग-अलग होने में भी एक साथ रहना सिखाता है। गांधीजी के समय में स्वतंत्रता संग्राम में यही ताकत काम आयी थी, और आज भी मुश्किल वक्त में हमें प्रेरणा देती है।

लेखक के बारे में –

डॉ. सिबी के. जोसेफ, प्रख्यात गांधीवादी चिंतक और निदेशक, श्री जमनालाल बजाज मेमोरियल लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर फॉर गांधियन स्टडीज, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान, वर्धा, महाराष्ट्र

अनुवादक – विवेक कुमार साव
(यह मूल अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद है।)

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