कलम और तलवार भाग-२

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सिद्धांत और रणनीति: असहयोग आंदोलन और मूर्ति हटाने की प्रक्रिया

असहयोग आंदोलन की रणनीति

1921 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन दिलाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध को प्रभावी बनाने के लिए सिद्धांत और रणनीति प्रस्तुत की। इसका उद्देश्य केवल जॉन लारेंस की मूर्ति को हटाना नहीं था, बल्कि इसे राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक बनाना था। गांधीजी ने कहा कि लाहौर नगरपालिका को सत्याग्रह के लिए तैयार रहना चाहिए और सरकार के हस्तक्षेप के बावजूद, कानून-भंग के जरिए अपने अधिकार का उपयोग करना चाहिए।

गांधीजी के निर्देश

गांधीजी ने स्पष्ट किया कि नगरपालिका के सदस्यों को प्रतिमा हटाने का प्रयास पूरी पारदर्शिता और अहिंसात्मक तरीके से करना चाहिए। यह कार्य चोरी-छिपे या रात के अंधेरे में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सार्वजनिक रूप से और साहसपूर्वक किया जाना चाहिए। उन्होंने सत्याग्रहियों को संगीनों के सामने डटकर खड़े होने और अपनी गिरफ्तारी देने की तैयारी करने का आह्वान किया। साथ ही, जनता को यह निर्देश दिया कि वे हिंसा और अपशब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि यह आंदोलन की नैतिकता और उद्देश्य को कमजोर करता है। गांधीजी ने शांतिपूर्ण और अनुशासित सत्याग्रह को आंदोलन की सफलता का आधार बताया।

अहिंसा और साहस का आह्वान

गांधीजी ने सत्याग्रह के दौरान अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत बताया। उन्होंने कहा कि सत्याग्रही को लछमनसिंह और दलीपसिंह जैसे शहीदों का साहस अपनाना चाहिए। गांधीजी का मानना था कि यदि जनता आत्म-बलिदान के लिए तैयार हो, तो अंग्रेज सरकार को झुकने पर मजबूर किया जा सकता है।

सरकार की कार्रवाई और जनता की प्रतिक्रिया

गिरफ्तारियों का दौर

इस दौरान पंजाब, असम, बंगाल और अन्य स्थानों पर कई प्रमुख नेताओं जैसे लाला लाजपत राय, संतानम, गोपीनाथ, फूकन और अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अब असहयोग आंदोलन को दबाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

लाहौर में मूर्ति हटाने का संघर्ष

लाहौर में जॉन लारेंस की मूर्ति का विरोध अब केवल स्थानीय मुद्दा नहीं रहा। यह एक राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन का प्रतीक बन गया। गांधीजी ने इसे अहिंसा और अनुशासन का उदाहरण बनाने की कोशिश की।

असहयोग आंदोलन का गहरा संदेश

स्वराज और जनता का अधिकार

गांधीजी ने स्पष्ट किया कि ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह जनता पर अपनी इच्छा थोपे। उन्होंने कहा कि लॉरेंस की मूर्ति का मामला इस बात को स्पष्ट करता है कि ब्रिटिश शासन “तलवार” या “कलम” की हुकूमत से जनता को नियंत्रित करना चाहता है। उन्होंने जनता को प्रेरित किया कि वे केवल ब्रिटिश शासन से नहीं, बल्कि हर प्रकार की दासता से मुक्त होने का प्रयास करें।

नए नेतृत्व का उदय

लाला लाजपत राय की गिरफ्तारी के बाद, पंजाब ने तुरंत नया नेतृत्व आगा सफदर के रूप में चुना। गांधीजी ने जनता से आगा सफदर का समर्थन करने और लालाजी के अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने की अपील की।

सत्याग्रह के लिए अनुशासन और धैर्य

अहिंसा और आत्मसंयम की अनिवार्यता

गांधीजी ने जनता से अपील की कि वे उत्तेजना के समय भी शांति और संयम बनाए रखें। उन्होंने कहा कि असहयोग आंदोलन की सफलता इस पर निर्भर करती है कि जनता अनुशासन और अहिंसा को कितना अपनाती है।

हिंदू-मुस्लिम एकता का महत्व

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को आंदोलन की आधारशिला बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उत्थान के लिए सभी धर्मों और समुदायों को एकजुट होकर काम करना चाहिए।

राष्ट्रीय आंदोलन का विस्तार

सामूहिक जागरूकता

1921 में गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप लिया। जॉन लारेंस की मूर्ति को हटाने का मुद्दा अब पूरे देश के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक बन गया।

प्रश्न: किसकी हुकूमत चाहिए?

गांधीजी ने जनता से यह विचार करने को कहा कि वे किस प्रकार की सरकार चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर जनता अंग्रेजी हुकूमत को हटाकर अपनी सरकार स्थापित करती है, तो यह सुनिश्चित करना होगा कि यह “कलम” या “तलवार” की हुकूमत न होकर जनता की सेवा पर आधारित हो।

निष्कर्ष: असहयोग आंदोलन और नेतृत्व की जिम्मेदारी

जॉन लारेंस की मूर्ति के खिलाफ लाहौर में शुरू हुआ संघर्ष ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक बन गया। गांधीजी ने इसे जनता की आत्मशक्ति, साहस और अनुशासन को प्रेरित करने का माध्यम बनाया। यह आंदोलन केवल मूर्ति हटाने का प्रयास नहीं था, बल्कि यह प्रश्न उठाने का मौका था कि स्वराज के बाद भारत की सरकार कैसी होगी। गांधीजी ने कहा कि जनता को अपनी स्वतंत्रता की जिम्मेदारी समझनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि नई सरकार “तलवार” की शक्ति पर नहीं, बल्कि सेवा और सहयोग पर आधारित हो। गांधीजी के नेतृत्व ने आंदोलन को न केवल संगठित किया, बल्कि इसे एक नैतिक और वैचारिक दिशा दी। उनके सिद्धांत और रणनीति ने असहयोग आंदोलन को एक नया आयाम दिया और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया।

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