पश्चिम बंगाल के मध्य कोलकाता में स्थित ऐतिहासिक बैंटिक स्ट्रीट पर आलिया होटल एक प्रतिष्ठित रेस्तरां है, जो अपने अस्तित्व के 97 वर्षों से अधिक के दौरान शहर के सांस्कृतिक व गैस्ट्रोनॉमिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है। इस होटल की दीवारें इतिहास की गवाह हैं, और इसका प्रत्येक कोना एक कहानी सुनाता है जो आपको कोलकाता के गौरवशाली अतीत में ले जाएगा। इस होटल के मालिक जमाल अहमद जमाल जी हैं, जिनकी परिवारिक विरासत और अनुभव ने इस होटल को आज भी बनाए रखा है। जमाल जी ने हाल ही में अपने जीवन के 98वें वर्ष में प्रवेश किया है, लेकिन उनकी आयु के इस पड़ाव पर भी वह उतने ही ऊर्जावान, सक्रिय और जीवंत हैं, जितने कि वह अपने युवा अवस्था में थे। इस उम्र में भी उनकी शारीरिक मजबूती, जोरदार आवाज, और आशावादी दृष्टिकोण उन्हें हमारे समय से अलग बनाता है। जमाल जी की लेखनी अभी भी उतनी ही तेज और प्रभावशाली है, जितनी कि वह अपने युवा दिनों में थे। वह न केवल लिखते हैं, बल्कि मंचों पर अपनी रचनाएँ पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध भी करते हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह समाज में एकता और सामाजिक सौहार्द के लिए निरंतर काम कर रहे हैं। बातचीत के दौरान, उन्होंने कहा भी था कि एकता के लिए मैं आज भी जान देने के लिए तैयार हूँ।
इसी रेस्टोरेंट के नीचे एक साधारण से दिखने वाले तंग कमरे में इनका कार्यालय है, जो उनकी सरल किंतु, मेहनती जीवनशैली को बयां करता है। उनकी जिंदगी की एक दिलचस्प कहानी महात्मा गांधी के साथ जुड़ी हुई है। साल 1947 में, जब गांधीजी कोलकाता में हिंदू-मुस्लिम दंगों को शांत करने के लिए आए थे, जमाल जी ने उनके लिए 350 पराठे व पूड़ी बनाकर उनकी सभा में हाजिर हुए थे। उस समय जमाल जी की उम्र 18 साल थी। आज जब समाज में नफ़रत और हिंसा का वातावरण हावी होता जा रहा है, जमाल जी जैसे लोग हमें प्रेरित करते हैं और हमें एकता व मानवता की महत्ता की याद दिलाते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए लगातार मेहनत करते रहना चाहिए और समाज में शांति व एकता को बढ़ावा देना चाहिए। तो आइए, जमाल अहमद जमाल जी के साथ हुई प्रेरक बातचीत को यहाँ पढ़ें और उनके जीवन के अनुभवों को जानें, जो न केवल हमें प्रेरित करेंगे बल्कि हमें हमारे जीवन के मूल्यों और आदर्शों की याद भी दिलाएंगे –
मैंने जैसे ही आलिया रेस्टुरेंट के एक कर्मचारी से पूछा कि जमाल अहमद जमाल जी से मिलना है, कैसे मिलना हो पाएगा? कर्मचारी ने मुझे दरवाजे की ओर इशारा किया और कहा कि दाहिने मुड़ने पर उनका ऑफिस है, जहाँ वह बैठे हैं। मैं उनके ऑफिस में गया और पाया कि वह अपने कार्यों में तल्लीन थे। जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या बात है, कहिये?” मैंने उन्हें बताया कि मैं वर्धा, सेवाग्राम से आया हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ। सेवाग्राम का नाम सुनते ही, जमाल जी खड़े हो गए और उन्होंने मेरा बड़े अदब से स्वागत किया। उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा। मैं बैठते हुए ही उनसे पूछ बैठा, “आपके पास बापू के संस्मरण हैं, मुझे उन्हें जानना है।” उनकी आँखों में एक चमक थी, जो बापू के प्रति गहरे सम्मान को दर्शा रही थी। उन्होंने मुझसे पूछा, “आपको इस बारे में कैसे पता चला?” मैंने उत्तर दिया, “कोलकाता में मेरे एक परिचित आदित्य सर ने मुझे यह जानकारी दी थी और बापू के प्रति प्रेम ने मुझे आपके पास आने के लिए प्रेरित किया।” फिर जमाल जी ने अपनी बात कहनी शुरू की, उन्होंने बताया कि प्रेम के अलावा कोई दरवाजा नहीं है, यह एक ऐसा शब्द है जो केवल ढाई अक्षरों से बना है, लेकिन इसका अर्थ और गहराई पूरी किताब के बराबर है। सच यह भी है कि उधार माँगी मोहब्बत मुझे नहीं भाती। हमें प्रेम केवल जताना नहीं चाहिए, बल्कि हमें करके दिखाना चाहिए। इसी तरह, बापू के बारे में बात करते समय, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके आचरण व आदर्शों का पालन करना हमारा कर्तव्य है। बापू ने हमें जो रास्ता दिखाया है, अगर हम उस पर नहीं चलते हैं, तो हम बापू को सही तरीके से याद नहीं कर पा रहे हैं। गांधीजी हमेशा कहते थे कि अहिंसा परम धर्म है, और इसी रास्ते पर चलते हुए उन्होंने हमेशा इंसानों की सेवा की। हमारा राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है, लेकिन हमारे दिल में इंसान का झंडा होना चाहिए, कि हम इंसान हैं, हम मनुष्य हैं, और मनुष्य की सेवा ही हमारा कर्तव्य है, यही बापू ने हमें सिखाया था।
बापू से मेरी मुलाकात 1947 में बेलियाघाटा में हुई थी, जब मैं 18 साल का था। उस समय सांप्रदायिक झगड़ा हुआ था, और समझौते के लिए, लोगों को एकजुट करने के लिए बापू वहाँ आए थे। हिंदू-मुसलमान के बीच जो खाई है, हम उसे मिलकर खत्म कर सकते हैं, बापू का यह आचरण था, और बापू के इस आचरण को यदि हम अपना लें तो हमारा भविष्य उज्जवल होगा। पहले हमें इंसानियत की बात करनी चाहिए, पहले एक सच्चा इंसान बनना चाहिए, तब किसी धर्म का अच्छा धार्मिक बनना चाहिए। जब तक कोई अच्छा इंसान नहीं बन सकता, तब तक किसी धर्म का धार्मिक नहीं बन सकता। हमें बाहरी आडंबर की नहीं, बल्कि आंतरिक सफाई की आवश्यकता है। साम्प्रदायिक झगड़ा हुआ था, बेलियाघाटा में बापू आए थे। यहाँ भी वातावरण बिगड़ रहा था, इसलिए बापू अनशन पर बैठ गए और कहा कि जब तक हिंदू-मुसलमान एक चटाई पर नहीं बैठेंगे, तब तक हम नहीं समझेंगे कि हमारा देश आजाद हुआ। इसी के लिए वहाँ करीम मियाँ भी थे, और उन्होंने वहाँ एक सम्मेलन किया। उस समय, हमारे यहाँ दाल पूड़ी और पूड़ी बिकती थी, आलू भाजी बनती थी। तो करीम मियाँ ने यहाँ से तीन सौ पूड़ियाँ बनाकर लाने के लिए कहा, ताकि हम सभी को एक साथ, एक ही चटाई पर बैठाकर खिलाएंगे। इत्तेफाक से मैं भी उस समय वहाँ था, मुझे उत्तेजना हुई कि जब ऐसी बात है तो मैं गांधीजी से मुलाकात करूँगा। फिर मैंने तीन सौ की जगह साढ़े तीन सौ पूड़ियाँ यानी, पचास पूड़ियाँ अपनी तरफ से वहाँ लेकर गया। जब मैं वहाँ पहुँचा, तो देखा कि महात्मा गांधीजी वहाँ बैठे हुए थे। मैंने उनसे कहा – बापू, हिंसा भड़क उठी है, अहिंसा के देश में। बापू ने कहा – बेटा, सब ठीक हो जाएगा, मैं इसी के लिए तो अनशन पर बैठा हूँ। तो यह साहस था। यह सब याद करते हुए जमाल जी की आँखें भावुकता से भर गईं और उनके नेत्रों में एक हल्की सी चमक के साथ न दिखते हुए आंसू भी छलक आए थे।
उन्होंने कहना जारी रखा – इंसान में उत्तेजना होती है, हालांकि यह सभी में नहीं होती लेकिन कुछ लोगों में होती है कि वह एक दूसरे से संपर्क करना चाहते हैं, उनकी बातों को समझना चाहते हैं। जब तक इंसान कुछ सीखेगा नहीं, तो वह दूसरों को कुछ सिखा नहीं सकता। इंसान जब एक दूसरे से मिलेगा, बात करेगा, सुनेगा, तभी उसका मस्तिष्क विकास कर सकता है। आश्रम में रहिए, मस्जिद में रहिए या कहीं भी रहिए, जहाँ भी रहिए सच्ची बात बोलिए, खाटी बात बोलिए, इंसानियत की बात बोलिए, सब ठीक हो जाएगा। आज हमें खंडित किया जा रहा है, भाषा के नाम पर, पार्टी के नाम पर, कई-कई नामों से हमें बांटा जा रहा है। अब तो स्थिति बहुत बिगड़ गई है, पहले घर-घर में पता नहीं चलता था कि हम हिंदू हैं या मुसलमान हैं। शादी होती थी तो डोला सजाने के लिए हिंदू भी आते थे और मुसलमान भी। मंडप जब बनता था, तो सभी एक दूसरे के साथ भोजन करते थे, लेकिन आज सब मानो अलग-अलग हो गए हैं, शहर ऊंचे दर्जे में हो गया, गाँव नीचे दर्जे में हो गया। विकास हुआ, लेकिन आंतरिक सफाई नहीं हुई। बहुत सारे द्वेष व गलत भावनाएं पैदा हो गई हैं। अब नफरत बहुत बढ़ गई है। इसी नफरत को दूर करने की जरूरत है।
मैं एक ऐसा इंसान हूँ जो नफरत को दूर करना चाहता है। मैं किसी की किताब को गलत नहीं कहता, न किसी के देवता को गलत कहता हूँ, और न ही किसी इंसान को ठोकर मारता हूँ। मैं कभी नहीं कहता कि मुसलमान सबसे अच्छा है, क्योंकि मुसलमान भी गलत हो सकता है अगर उसका ईमान सच्चा नहीं है। हम नमाज पढ़ते हैं, दाढ़ी रखते हैं, टोपी पहनते हैं, लेकिन सिर्फ इससे ही हम मुसलमान नहीं हो जाते। हमारा कर्तव्य क्या है? मेरी सोच क्या है? मेरी फिक्र क्या है? अगर यह सब सही नहीं है तो हम मुसलमान नहीं हैं। व्यक्ति को सच्चा बनना चाहिए। सबकी बनावट तो एक ही है – मिट्टी का ढेला है, आग का शोला है, पानी की बूंदें हैं, हवा का झोंका है। यह कुरान में भी कहा गया है और रामचरितमानस में भी यही बात कही गई है –
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा।
पंच रचित अधि अधम शरीरा।।
इसके बाद उन्होंने मुझे ‘फिरनी’ खाने के लिए दिया। ‘फिरनी’ का स्वाद लेकर और फिर उसके रंग को देखकर, मैंने जमाल जी से पूछा कि इसमें गुड़ डाला गया है? उन्होंने मुस्कराते हुए कहा – नहीं, इसमें चीनी है, लेकिन इसमें मेहनत की मिठास है। जिस चीज पर व्यक्ति मेहनत करेगा, उसका रूप परिवर्तन हो जाएगा, और वह एक नई पहचान बना लेगी। लोहा सिर्फ लोहा ही रहता है, जब तक कि उसे किसी उपयोगी रूप में नहीं ढाला जाता। अगर कोई उसे एक इंजन में बदल दे, तो उसकी कीमत कई गुना बढ़ जाती है। नहीं तो वह सिर्फ लोहे के भाव बिकता रहता है। यह परिवर्तन मेहनत का ही परिणाम है। अगर आप अपने ऊपर मेहनत करें, देश के लिए मेहनत करें, तो देश का रूप भी परिवर्तित हो सकता है। मेहनत ही असल है।
प्रस्तुत – Global Gandhi Network (Vivek Kumar Shaw)
(10 फरवरी, 2025 को आलिया रेस्टुरेंट में यह साक्षात्कार लिया गया।)