Fact Check
गांधी फ़िल्म के बाद दुनिया ने गांधी को जाना।- मोदी
फैक्ट-
1930 में टाइम मैगजीन ने गांधी को पर्सन ऑफ द ईयर नवाजा था। उनकी मशहूरियत अब तक भारत और दक्षिण अफ्रीका की सीमाओं से बाहर फैल चुकी थी।
टाइम के कवर पर आधा दर्जन बार छपे। वैश्विक प्रेस उन्हें कवर करती थी। द एटलांटिक, द इकॉनमिस्ट, और न्यूयार्क टाइम्स में उनके साक्षात्कार छप रहे थे। आईंस्टीन और टॉलस्टॉय उन्हें पत्र लिख रहे थे।
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राउंड टेबल कांफ्रेस के लिए अपने लन्दन दौरे के समय, 5 नवंबर 1931 को वे किंग से मिले।
शाही प्रोटोकॉल कहता था कि नीला या ग्रे सूट पहना जाए। राजा की आंखों में देखा न जाये। उन्हें झुककर सलाम किया जाए, खास अंदाज में बैठा जाए। गांधी ने हर प्रोटोकॉल तोड़ा।
अधनंगा फकीर, बकिंघम पैलेस के बाहर प्रेस से कहता है कि दो लोगो के बराबर, आपके राजा में कपड़े पहने हुए थे।
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लौटते हुए फ्रांस गए।
फिलॉस्फर और नोबेल विजेता मित्र रोम्यां रोलां से मिले।
पेरिस में एकमात्र सभा की, जहां लोग टूट पड़े। विलियम शीरर जिन्होंने बाद में नाजी जर्मनी पर सबसे मशहूर किताब लिखी, इस मीटिंग में मौजूद थे।
भीड़ का प्रमुख कारण था कि 1930 में साल्ट मार्च की न्यूजरील फ्रांस सिनेमा घरों में दिखाई जा चुकी थी। फ्रेंच मैगजीन रिजेंरेशन ने जनवरी 1932 में “गांधी और भारत” विशेषांक निकाला था।
1934 में सिंगर कोल पोर्टर ने अपने ब्रॉडवे हिट म्यूजिकल “एनीथिंग गोज” में एक गीत लिखा, बोल थे-
यू आर ऑन द टॉप,
यू आर महात्मा गांधी…
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बहरहाल, पेरिस से वे मार्सेल गये फिर जेनोआ। लोगो को सम्बोधित किया। भारत की आजादी और स्वराज के बारे मे बताया।
वापसी में वे इटली गए। मुसोलिनी ने मिलने की इच्छा जाहिर की। दानिशमंद गांधी ने 15 मिनट का समय उसे भी दिया। शांति का पाठ पढ़ाकर लौटे। जनरल मौरिस उस मुलाकात को याद करते हुए लिखते है कि गांधी के स्वागत मे मुसोलिनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था। यह असामान्य था
मिलना तो रोम के पोप भी चाहते थे। पर वे बकिंघम की घटना से सबक ले चुके थे। गांधी का प्रोटोकॉल के प्रति अनिच्छुकता देख “रविवार को किसी से न मिलने” का बहाना हुआ।
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वापस आकर उनका बचा जीवन, जेल, या अछूतोद्धार यात्रा में गया। कांग्रेस की सदस्यता उन्होंने 1932 में ही छोड़ दी थी। पर जनता और कांग्रेस उन्ही में नेता देखती, मागर्दर्शन लेती।
आने वाले वक्त में महात्मा गांधी 5 बार, 1937, 1938, 1939, 1947 औऱ 1948 में नोबेल पीस प्राइज के लिए नामित किये गए।
अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित उनका आंदोलन एक नई परिघटना थी। खासकर साल्ट मार्च, जिसे अमेरिकन प्रेस ने लगातार कवर किया था। दुनिया इसे दम साधे देख रही थी।
उनका आंदोलन, तौर तरीके दुनिया मे चर्चा औऱ प्रेरणा का विषय थे।
तो बार बार नामित होने के बावजूद, अवार्ड देने में कमेटी को कुछ दिक्कते थी।
दरअसल वे अवार्ड की तत्कालीन श्रेणियों में कहीं फिट ही नही होते थे। न वे राजनेता थे, न वे अंतराष्ट्रीय कानूनविदित, न किसी एनजीओ की तरह ह्यूमनटेरियन रिलीफ वर्कर।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर में किसी शांति पूर्ण समाधान के पक्षधर को व्यक्ति पुरस्कृत करना भी एक दुविधा थी।
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1947 के नॉमिनेशन पर में पाकिस्तान-भारत संघर्ष में उनका भारत के प्रति झुकाव भी नोबेल कमेटी को पशोपेश में डाल गया।
पर 1948 में वह पांचवीं फिर नामित किये गये। प्राइज की घोषणा के 2 दिन पहले बापू की हत्या हो गयी।
अब फिर पशोपेश की स्थिति थी।
गांधी पर जकड़नों को तोड़कर इस बार कमेटी उन्हें विजेता घोषित करने वाली थी। पर मृत्यु के कारण बाद उन्होंने कोई वसीयत, या ऐसा संगठन नामित नही किया, जिसे उनके नाम की पुरस्कार की राशि मिले।
मृत्युपरांत पुरस्कार दिए जाने की परंपरा नही थी। कमेटी फिर ठिठक गई। ऐसे में 1948 का शांति का नोबल पुरस्कार किसी को भी नही दिया गया।
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गांधी के बाद के दौर में दुनिया की महान हस्तियां उनसे प्रेरणा पाती रहीं। मार्टिन लूथर किंग ने अपने कार्यालय में उनकी तसवीर लगा रखी थी।
वे 1959 के अपने भारत दौरे में उन्होंने तमाम स्थान घूमें, जहां जहां गांधी रहे, आंदोलन किया, खास गतिविधियां की। और गांधी पर व्याख्यान दिए। इस यात्रा को उन्होंने गांधी पिलग्रीमेज का नाम दिया।
नेल्सन मंडेला, डेसमंड टूटू, बराक ओबामा, अल्बर्ट आईंस्टीन, लुई फिशर, रोम्यां रोलां, जार्ज बर्नार्ड शॉ, दलाई लामा, अल गोर, आंग सान सूकी, पर्ल बक, यू थान्त, हो ची मिन्ह, स्टीव जॉब्स जैसे नेताओं, लेखकों, और स्वतंत्रता के सेनानियों ने अपने दौर में गांधी को उद्धृत किया, खुद को उनसे प्रभावित बताया।
बीटल्स के मशहूर बैंड ने अपने गीत उन्हें समर्पित किये, बल्कि वियतनाम युद्ध के समय गांधी के तरीकों से विरोध में भी हिस्सा लिया। और वहां स्पीच में उनका नाम भी लिया।
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गांधी की हत्या, एक अंतरराष्ट्रीय सदमा थी। दुनिया के अखबार इस अमानवीय कृत्य से रंगे थे। विश्वास के काबिल न था, कि गांधी जैसा शख्स, अपने ही आजाद देश में, अपनो के हाथों मारा गया।
आइंस्टीन ने कहा- आने वाली पीढियां कभी यकीन नही करेंगी, की कोई हाड़ मांस का इस तरह का आदमी, इस धरती पर आया था।
प्रेजिडेंट हैरी ट्रुमेंट ने कहा- इस सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोग उस एकता और भाईचारे के संदेश से प्रभावित हैं, जिसका प्रतीक महात्मा गांधी थे।
न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा- हमारी राजधानी (वाशिंगटन) में दुख और भय की अंतर्धारा फैल गयी है। क्योकि इस पीढ़ी क्व लिए शांति का सबसे बड़ा प्रतीक चला गया है।
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पश्चिम के फिल्मकार, रिचर्ड एटनबरो भी गांधी से प्रभावित लोगों में थे। उनकी मृत्यु के बाद उनपर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। 1960 के दशक में इसके लिए जवाहरलाल नेहरू से बात की।
नेहरू ने न सिर्फ स्वीकृति दी, समर्थन का भी वादा किया। मगर फ़िल्म तब न बन सकी।
अंततः, एटनबरो की यह फ़िल्म 1982 में बनकर तैयार हुई। यह ऑस्कर के लिए 11 श्रेणियों में नामांकित हुई, और 8 अवार्ड जीत भी लिए। इससे ज्यादा अवार्ड फ़िल्म इतिहास में, बेनहर, टाइटेनिक, लार्ड ऑफ द रिंग्स केवल 7 फिल्मों को मिले हैं।
जिनमे कोई भी, बायोग्राफी नही है।
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इसे 5 बाफ्टा अवार्ड भी मिले। नामित यह 16 श्रेणियों मे हुई, जो अब तक रिकार्ड है।
टाइम मैगजीन ने फिर 2011 मे उन्हे इतिहास की आलटाइम 100 सबसे प्रभावशाली शख्सितों मे शुमार किया।
वैश्विक वोटिंग से बनी, और जीसस क्राइस्ट से शुरू होने वाली इस सूची मे