नाना चले नाती-नातिन को गांव की ज़िंदगी दिखाने: कौसानी आश्रम की एक संध्या

Ram Dutt Tripathi

रोज़मर्रा की दिनचर्या और बारिश के साथ एक खास शाम

आज का दिन सामान्य था — पढ़ने-लिखने और आत्मचिंतन में बीत गया। तीसरे पहर तक हल्की-फुल्की बारिश होती रही, लेकिन जैसे ही शाम ढली, एक दिलचस्प अनुभव ने दिल को छू लिया।

दरवाज़े पर नन्ही परी की दस्तक

डिनर के बाद मैं और श्रीकांत — जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं — अपने कमरे में बैठकर कॉफी पी रहे थे, तभी दरवाजे पर थपथपाने की आवाज़ आई। दरवाज़ा खोला तो सामने परी-सी साढ़े तीन साल की बच्ची खड़ी थी, बोली — “अंकल हमारे कमरे में चलो।”

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा पहले मम्मी-पापा से पूछ लो।” कुछ ही देर में वह अपने नाना को साथ लेकर वापस आ गई।

नाना जी से मुलाकात और पत्रकारिता पर चर्चा

नाना जी राजीव शर्मा जी, जो जम्मू मूल के हैं और अब नोएडा में रहते हैं, से परिचय हुआ। वे बैंक से रिटायर हैं। जब उन्हें पता चला कि मैं पत्रकार हूँ, तो जैसे कई सवाल पहले से मन में थे।

उन्होंने पूछा — “आजकल पत्रकारिता है कहाँ? सच्ची खबरें तो मिलती ही नहीं।”
मैंने कहा, “यह मीडिया मालिकों और सरकार की साठगांठ का नतीजा है। आज का पत्रकार खुद घुटन में जी रहा है।”
पर वे संतुष्ट नहीं थे, खासकर इस बात से कि पाकिस्तान से हाल ही में हुए युद्ध में उनके गांव के पास नुकसान हुआ, लेकिन मीडिया में कहीं चर्चा नहीं।

नन्ही बच्ची की जिद और हमारे कदम कमरे की ओर

इधर गम्भीर चर्चा चल रही थी, उधर नन्ही परी बार-बार कह रही थी — “अंकल चलो ना!” उसकी मासूम जिद को टालना मुश्किल था। हम उसके कमरे में पहुँचे, जहाँ उसकी माँ पानी लेकर आईं और आठ साल का बड़ा भाई राम भी मिला।

परी हमें अपने कमरे में पाकर बहुत खुश थी। मन में लगा जैसे कोई पुराना रिश्ता हो। वैसे भी बच्चों से मेरा लगाव जल्दी हो जाता है।

गांव की ओर बच्चों को ले जाते नाना जी

राजीव जी ने बताया कि वे नाती-नातिन को लेकर कौसानी से आगे, ग्वालदम के एक कैम्प में ले जा रहे हैं — ताकि गांव की ज़िंदगी, प्रकृति की नज़दीकी और ग्रामीण जीवन का अनुभव मिल सके। यह प्रयास प्रशंसनीय है।

कुछ देर की बातचीत के बाद हम लौट आए, क्योंकि अगली सुबह सूर्योदय देखने के लिए 5 बजे उठना था।


सायंकालीन प्रार्थना में बढ़ती भागीदारी: कौसानी में बढ़ती चहल-पहल

प्रार्थना में आए अधिक लोग: पर्यटकों की आमद

आज शाम की प्रार्थना में पहले से कहीं ज्यादा लोग थे। यह संकेत है कि अब पर्यटक यहाँ आने लगे हैं। स्कूलों की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं और कश्मीर जैसे पर्यटक स्थलों की जगह अब लोग कौसानी जैसे शांत विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।

भजन, गीत और गांधी चर्चा

सायंकालीन प्रार्थना सदानंद जी ने कराई। इसके बाद दो महिलाओं ने सुंदर भजन प्रस्तुत किए। दीपक पांडे ने एक भावपूर्ण गीत सुनाया। फिर गांधी विचारों की चर्चा के लिए सदानंद जी ने मुझे आमंत्रित किया।


गांधी जी और कौसानी का आध्यात्मिक संबंध

क्यों आए थे गांधी जी कौसानी

मैंने सबको बताया कि आज से करीब 100 साल पहले, जून 1929 में गांधी जी थकावट के कारण कौसानी आए थे। नेहरू जी ने उन्हें सुझाव दिया था कि गर्मी में हिमालय क्षेत्र की शांति उन्हें सुकून देगी।

जहां आज अनासक्ति आश्रम है, वह पहले एक चाय बागान मालिक का डाक बंगला था। यहाँ की हरियाली, हिमालय दर्शन और शांत वातावरण ने गांधी जी को चौदह दिन तक रुकने को प्रेरित किया।

गांधी जी: एक आध्यात्मिक व्यक्ति, न केवल राजनेता

मैंने बताया कि गांधी जी को हम राजनेता के रूप में जानते हैं, लेकिन वे गहरे आध्यात्मिक चिंतक भी थे। उन्होंने उपनिषद, कुरान, बाइबिल, योगसूत्र और पुराणों का गहन अध्ययन किया था।

पर भगवद्गीता उन्हें सबसे प्रिय थी। वे मानते थे कि महाभारत का युद्ध असल में हमारे मन का द्वंद्व है, और अर्जुन को दिया गया उपदेश — “कर्म करो, फल की चिंता मत करो” — जीवन का मूल मंत्र है।

अनासक्ति योग: गांधी जी की गीता व्याख्या

गांधी जी ने कौसानी में ही भगवद्गीता के भावार्थ को पूरा किया, जिसे उन्होंने “अनासक्ति योग” नाम दिया। यह पुस्तक आज भी आश्रम की दुकान में उपलब्ध है। प्रार्थना के बाद कई लोगों ने इसे खरीदा भी।


समापन: कौसानी में मन, प्रकृति और विचारों का संगम

कौसानी की इस एक संध्या ने जहाँ नन्ही बच्ची की मासूम मुस्कान से दिल को छुआ, वहीं नाना जी से गम्भीर बातचीत ने पत्रकारिता और समाज की चुनौतियों पर सोचने को मजबूर किया।

सायंकालीन प्रार्थना और गांधी जी की चर्चा ने इस अनुभव को और भी गहरा बना दिया।

कौसानी वास्तव में केवल एक स्थान नहीं, एक अनुभव है — जहां मन, प्रकृति और विचार एक साथ संवाद करते हैं।

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