गांधी बनना कठिन है, गांधी को अपनाना सरल – इस्लाम हुसैन

यह बात उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आयोजित एक गोष्ठी में गांधीवादी कार्यकर्ता इस्लाम हुसैन ने कही।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आज गांधी की प्रासंगिकता पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसमें उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष व जाने माने गांधीवादी कार्यकर्ता इस्लाम हुसैन को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।

इस्लाम हुसैन ने अपने मुख्य भाषण में गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी बनना भले ही कठिन हो लेकिन उसको व्यवहारिक रूप से अपनाना बेहद सरल है।

उन्होंने कहा कि गांधी जी ने इंग्लैंड में योरोपीय देशों और उस्मानिया सल्तनत आपसी जंगो से योरोपीय देशों के टूटने से हुए बदलाव देखे थे। और दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद को व्यक्तिगत रूप से भोगा था और यह अन्तर पाया कि इंसानों के बीच गैर बराबरी से अन्याय कैसे जन्म लेता है। और जो किसी भी समाज और मुल्क के लिए कितना घातक होता है।

जब गांधी भारत आए तब भारत साम्राज्यवादी लूट से टूट चुका था, 1890 से 1900 बीच आए अकाल महामारी से खेती किसानी बहुत बुरी हालत में पहुंच गई थी ग्रामीण हस्तकौशल भी बहुत अच्छी हालत में नहीं था। औसत भारतीय की आमदनी और योरोपीय देशों के लोगों की औसत आमदनी में जमीन आसमान का फ़र्क था।

उन्होंने भारत आकर यात्राएं करके व्यक्तिगत रूप से भारतीय समाज को जाना समझा और परखा फिर ब्रिटिश राज के साम्राज्यवादी शोषण के खिलाफ जहां एक ओर स्वदेशी और ग्राम स्वराज की बात की वहीं हर तरह की गैरबराबरी को खत्म करने की मुहिम शुरू की। इसमे जाति या जातिवाद के खिलाफ मुहिम एक हिस्सा था।

अपने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में दूदा भाई के दलित परिवार को रखने में उन्होंने कस्तूरबा तक का विरोध झेलना पड़ा पूरा अहमदाबाद का विरोध झेलना लेकिन अपनी बात पर जमे रहे।

गांधी का जाति के विरुद्ध स्टैंड और अस्पृश्यता निषेध दरअसल समाज की गैरबराबरी और अन्याय को खत्म करने के लिए था। इंसानों के बीच गैर बराबरी और गैइंसाफ से कोई समाज समेकित रूप से तरक्की नहीं कर सकता है।

गांधीजी का यह साफ़ साफ़ मानना था कि देश और समाज तभी मजबूत होकर आगे बढ़ सकता है जब वो गैर बराबरी को ख़त्म करके इंसाफ पर चले और आपसी सद्भाव बनाए रखें।
इसीलिए भारत जैसे बहुधर्मी बहुभाषी और बहुसंस्कृति वाले देश में क़ौमी एकता और सद्भाव बेहद ज़रूरी है।

गांधी जी ने खादी और ग्राम स्वराज ब्रिटिश उपनिवेश से लड़ने का हथियार बनाया विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार भी इसी उद्देश्य के लिए था।

गांधीजी ने ग्राम स्वराज की ऐसी परिकल्पना जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था से लेकर सुराज और स्वशासन की तरफ ले जाता है।

इस्लाम हुसैन ने कहा कि देश और समाज को बनाए बचाए रखने के साथ साथ देश के विकास के लिए गांधीजी के रचनात्मक कामों को अपनाया जाना बेहद ज़रूरी है। जिसमें सबसे पहला काम क़ौमी एकता है। गांधी जी ने महिलाओं के सशक्तिकरण की बात नहीं की बल्ऊ महिलाओं की सहभागिता से समाज और देश को बनाने की बात की थी। उनका मानना था कि महिला जिस क्षेत्र में जाएगी वहां अपने कुदरती नैसर्गिक गुणों, जैसे स्नेह, करूणा, दया को भी ले जाएगी। चाहे वो राजनीति हो या और सामाजिक आर्थिक काम। इसीलिए उन्होंने समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को प्रोत्साहित किया।

गांधी जी ने कर्म प्रधान अपने सादा जीवन की सादगी से संसाधनों के न्यूनतम उपयोग का सबक लेते हुए प्रकृति को सहेजने के लिए भी कहा।
उनकी इसी सादगी भरे जीवन ने उन्हें महात्मा बना दिया।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा के अवसर बढ़ाने के प्रयासों को गांधीजी के विचारों को जोड़ते हुए इस्लाम हुसैन ने कहा कि गांधी जी की नई तालीम और प्रौढ़ शिक्षा समाज को मजबूत बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।

इस गोष्ठी में पहले डा राजेन्द्र कैड़ा ने विषय का परिचय दिया। उसके बाद डा दिग्विजय पथनी डा शुभांकर शुक्ला ने गांधी जी के जीवन और मूल्यों पर बात रखी। उसके बाद प्रोफेसर गिरिजा पाण्डेय ने गांधी जी की उत्तराखंड की यात्राओं पर एक लम्बा और सारगर्भित वक्तव्य दिया।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नवीनचंद्र लोहनी ने गांधी के विचारों पर बात रखी। और मुख्य अतिथि इस्लाम हुसैन को अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया।

गोष्ठी में विश्वविद्यालय के संगीत विभाग ने गांधी जी का प्रिय भजन वैष्णव जन भी प्रस्तुत किया और बांसुरी वादन किया।

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