एक कदम गांधी के साथ पदयात्रा

पदयात्रा के विषय में अनेक प्रश्न हृदय में उदित होते हैं, यह क्या है? इसकी क्या जरूरत है? और समाज में इसका क्या महत्व है? पदयात्रा को लेकर ऐसे कई सवाल आपके मन में होंगे। जैसा कि पदयात्रा ऐसी यात्रा होती है जो पैदल की जाती है; आमतौर पर सामाजिक, धार्मिक, या फिर राजनीतिक उद्देश्यों से भी की जाती है। यह व्यक्तिगत या फिर सामूहिक रूप से भी की जा सकती है और इसमें लोग किसी विशेष संदेश या फिर जागरूकता फैलाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल चलते है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही मनुष्य के हृदय में यात्रा की इच्छा विद्यमान होती रही है। चाहे वह जल मार्ग हो या थल मार्ग, मनुष्य ने अनेक महत्वपूर्ण यात्राएँ कीं, जिनके द्वारा समाज के लोग परस्पर मिले, एक-दूसरे के विचारों व विश्वासों को समझा, और आपसी ज्ञान को सुदृढ़ किया। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो कई प्रसिद्ध यात्राओं का उल्लेख मिलता है, जो सत्य के मार्ग पर अडिग रहें। महात्मा बुद्ध ने भी पैदल ही यात्रा की, उन्होंने कश्मीर को पार कर अफगानिस्तान तक अपनी शिक्षाओं का प्रकाश फैलाया। सिखों के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर मक्का-मदीना तक का सफर तय किया। आदि शंकराचार्य ने धर्म की पुनर्स्थापना हेतु भारत के कोने-कोने में यात्रा की। कोलंबस की विश्वविख्यात यात्रा के बारे में सभी जानते ही हैं। इसी प्रकार, मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अश्वेतों के मताधिकार हेतु अलबामा की राजधानी मोंटगोमरी तक पदयात्रा की, जो इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है। ये सभी यात्राएं, जो सत्य और न्याय के लिए थीं। महात्मा गांधी ने भी अपने समय में, समाज को जागरूक करने और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संकल्पित प्रतिरोध प्रकट करने हेतु अनेक पदयात्राएँ कीं, चाहे वह दांडी यात्रा हो अथवा जागरूकता के लिए हरिजन पदयात्रा। तदनंतर, आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा दृष्टिगोचर होती है, जो विश्वविख्यात है। वर्तमान समय में देश में अनेक पदयात्राएँ आयोजित हो रही हैं। विगत तीन वर्ष पहले, कांग्रेस दल द्वारा लगभग साढ़े तीन से चार हजार किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा सम्पन्न हुई। हाल ही में, महात्मा गांधी के परपोते सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी ने नफरत की राजनीति के विरुद्ध, 29 सितंबर को नागपुर से एक पदयात्रा प्रारम्भ की, जिसका समापन 2 अक्टूबर को वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में होगा। इस यात्रा का उद्देश्य संविधान की रक्षा और एकता के संदेश को सुदृढ़ करना है, ताकि महात्मा गांधी के आदर्श बने रहें। इसी क्रम में, 21वीं सदी के इस तृतीय दशक में, जब सत्य और न्याय के मार्ग की और अधिक आवश्यकता है; सर्व सेवा संघ, समस्त गांधीजन और अनेक लोकतांत्रिक संगठनों के एकजुट प्रयास से ‘एक कदम गांधी के साथ’ पदयात्रा की शुरुआत की गई है। यह यात्रा, जो गांधी जयंती, अर्थात् 2 अक्टूबर 2025 को वाराणसी के राजघाट से प्रारंभ होगी और संविधान दिवस, 26 नवंबर 2025 तक निरंतर चलेगी। इसका समापन दिल्ली के राजघाट पर प्रभात 7 बजे सर्वधर्म-प्रार्थना के पश्चात् संविधान मार्च के रूप में होगा, जो जंतर-मंतर तक पहुँचकर एक सभा के साथ संपन्न होगा। लगभग दो माह की यह यात्रा गांधी मूल्यों, लोकतंत्र व संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए जनजागरण है, ताकि समाज में न्याय और समता का प्रकाश स्थापित हो। इस विषय में सर्व सेवा संघ के राम धीरज जी का कहना है कि आज हमारा संविधान और लोकतंत्र खतरे में हैं। हिंसक ताकतें भारत के नागरिकों को फिर से सत्ता, धर्म और पैसे से गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में महात्मा गांधी के विचार और उनका मार्ग ही लोगों को एकजुट करके संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने का प्रभावी रास्ता प्रदान करेगा। इस पदयात्रा के मार्ग को समझें तो यह बनारस राजघाट से प्रारंभ होकर गोपीगंज, प्रयागराज, कुंडा, रायबरेली, लखनऊ, उन्नाव, कानपुर, अकबरपुर, औरैया, इटावा, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा-वृन्दावन, होडल, पलवल, बल्लभगढ़, फरीदाबाद, बदरपुर बार्डर, निजामुद्दीन, और दिल्ली के राजघाट होते हुए जंतर-मंतर तक पहुँचेगी। यह लगभग एक हजार किलोमीटर की यात्रा, जिसमें सौ से भी अधिक पड़ाव हैं। इस पदयात्रा में कई लोग शामिल होंगे, जिनमें सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, मंत्री अरविंद कुशवाहा व अरविंद अंजुम, आंदोलन समिति के संयोजक डॉ. विश्वजीत, युवा प्रकोष्ठ के संयोजक भूपेश भूषण, विनोबा आश्रम गागोदा की सरिता बहन, और उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष राम धीरज भाई जैसे समर्पित यात्री इस पुनीत संकल्प के साथ पूर्ण मार्ग तक रहेंगे, ताकि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और जनमानस के उत्थान का संकल्प ध्येय सिद्ध हो। इसके अलावा देशभर से प्रबुद्ध गांधीकर्ता, लोकतांत्रिक चेतना से प्रज्वलित नागरिक, जन आंदोलनों के ध्वजवाहक, साहित्यकार, पत्रकार और समाजकर्मी एकजुट होंगे। उनके साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, सेवाग्राम आश्रम की अध्यक्ष आशा बोथरा, राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के संयोजक आनंद कुमार, समाजवादी जन परिषद के महासचिव अफलातून, जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय के प्रफुल्ल सामंतरा, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण, भारत जोड़ो अभियान के योगेंद्र यादव, नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर, संयुक्त किसान संघर्ष समन्वय समिति के सुनीलम, सोशलिस्ट पार्टी के संदीप पांडे, जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के जयंत दीवान इस यात्रा के उदात्त उद्देश्यों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करेंगे।

इस पदयात्रा का ध्येय है, स्वतंत्रता संग्राम के विरासत और सामाजिक सद्भावना को मजबूत बनाना, संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए जन-चेतना को प्रज्वलित करना, इसके साथ ही नौजवानों, महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और समाज के सभी दीन-दुखियों के संवैधानिक अधिकारों की स्थापना के लिए जागरूकता फैलाना। इसके साथ ही, यह यात्रा भय व हिंसा से मुक्त वातावरण के निर्माण के लिए जनमानस के साथ संवाद स्थापित करेगी, ताकि सत्य, समता और न्याय पुनः स्थापित हो, जिससे निर्भय समाज की स्थापना हो सके। यह यात्रा शोषण से मुक्त, अहिंसक समाज की स्थापना के लिए समर्पित है। बेरोजगारी, कृषि संकट, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यापारीकरण, पर्यावरणीय चुनौतियों, साथ ही किसानों, मजदूरों की समस्याओं के समाधान हेतु जन-चेतना जागृत करना, इस यात्रा का महत्वपूर्ण दायित्व है। इसके अलावा सर्व सेवा संघ, जो महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा और जयप्रकाश नारायण की विरासत को संजोए हुए है, इसे वर्ष 2023 में वर्तमान प्रशासन द्वारा बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया था। इस कार्रवाई का विरोध करने वाले सत्याग्रहियों को गिरफ्तार भी किया गया और उन पर लाठीचार्ज भी किया गया था। यह घटना गांधी विचार और भारत की ऐतिहासिक विरासत पर गहरा आघात था। इस ध्वस्तीकरण से सर्व सेवा संघ में संरक्षित दुर्लभ साहित्य, पत्राचार और ऐतिहासिक दस्तावेज भी नष्ट हो गए थे, जो एक राष्ट्रीय धरोहर का अपमान भी है। इस अन्याय के खिलाफ जन-जागरण और गांधी मूल्यों की रक्षा के लिए भी ‘एक कदम गांधी के साथ’ पदयात्रा ने व्यापक स्वरूप लिया। यह यात्रा वाराणसी से शुरू होगी, जहाँ के जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक संस्था को नष्ट किया, और दिल्ली के राजघाट तक जाएगी, ताकि लोगों को इस निंदनीय कृत्य की सच्चाई से अवगत कराया जा सके।

(लेखक एच.के.बी.के डिग्री कॉलेज, कर्नाटक में सहायक आचार्य हैं।)

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